नियमावली
शोधपत्र की प्रकाशन नीति स्पष्ट है। खुले स्तर पर पूरे भारत से शोध-पत्र आमंत्रित किए जाते हैं तथा समय-समय पर विशेषांकों का प्रकाशन भी किया जाता है।
शोध संचार, किसी भी प्रकार के सूचीकरण की गारंटी नहीं देता है। क्योंकि यह पूरी तरह से सूचीकरण प्राधिकारी पर निर्भर करता है। प्रकाशन मंडल बौद्धिक अखंडता को बहुत गंभीरता से लेता है। प्रकाशक, संपादक, समीक्षक और लेखक सभी अपेक्षित नैतिक व्यवहार के मानकों पर सहमत हैं, जो सर्वोत्तम अभ्यास दिशानिर्देशों पर आधारित है।
हमारी पत्रिका में प्रकाशित प्रत्येक लेख ओपन-एक्सेस और तुरंत ऑनलाइन पहुंच योग्य है। संपादकों और लेखकों के लिए ऑनलाइन टूल की आपूर्ति, लेखों का निर्माण और होस्टिंग सभी इसमें शामिल हैं।
हमारे द्वारा प्रकाशित लेखों के निश्चित प्रकाशित संस्करण हमारी वेबसाइट उन तरीकों से उपलब्ध है जो सभी के लिए सुलभ हों। हम तीसरे पक्ष के प्लेटफ़ॉर्म को स्वयं इस प्रक्रिया को प्रबंधित करने या लेख में बाद में किए गए परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने के लिए अपने प्लेटफ़ॉर्म को अपडेट करने में सक्षम बनाने के लिए एपीआई प्रदान करते हैं।
लेख / शोध-पत्र प्रकाशन हेतु दिशानिर्देश
- 1.लेख / शोध-पत्र अधिकतम 2500-3500 शब्दों में हो।
- 2.सन्दर्भ ग्रन्थसूची का उल्लेख अवश्य करें। सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में लेखक का उपनाम, मुख्य नाम, पुस्तक का नाम, प्रकाशन संस्थान का नाम, स्थान, प्रकाशन का वर्ष एवं पृष्ठ संख्या अंकित होना चाहिए। पत्रिका के सन्दर्भ में लेख का शीर्षक, लेखक का नाम, पत्रिका का नाम, अंक, पृष्ठ क्रम एवं प्रकाशन वर्ष दें।
- 3.शोध-पत्र Microsoft Office Word की फाइल में हिंदी के मंगल फॉंट में टाइप करवाकर भेजें।
- 4.ई-मेल द्वारा भी शोध-पत्र भेजा जा सकता है| शोधपत्र ई-मेल द्वारा संपादक के ई-मेल editor@skushodhsanchar.com पर अथवा डाक द्वारा विभाग के पते - पत्रकारिता विभाग, श्री कृष्णा यूनिवर्सिटी छतरपुर (मध्य प्रदेश) पर भेजा जा सकता है
- 5.शोध पत्रों की स्वीकृति एवं अस्वीकृति का अंतिम निर्णय सम्बंधित विषय के वरिष्ठ विशेषज्ञ की अनुशन्सा (Expert comments of Referees) से संपादक मण्डल द्वारा लिया जाता है। इस संबंध में अंतिम अधिकार संपादक मंडल को प्राप्त है।
- 6.विषय विशेषज्ञ का चयन संपादक मंडल द्वारा किया जायेगा।
- 7.विषय विशेषज्ञ द्वारा किसी शोध पत्र में संशोधन की अनुशंसा किए जाने पर उसे लेखक के पास द्वारा भेजकर एक निश्चित समय सीमा में संशोधन का अनुरोध किया जाएगा। लेखक द्वारा संशोधित शोध पत्र को मूल्यांकन के लिए पुनः विशेषज्ञ के पास संस्तुति के लिए भेजा जाएगा।
- 8.शोध-पत्र प्रकाशन के लिए निर्धारित शुल्क अकाउंट नंबर 37870374754 IFSC – SBIN0003578 पर फोन पे या गूगल पे द्वारा भेजें।
- 9.शोध पत्र के प्रकाशन हेतु लेखक को संपादक के नाम एक पत्र भेजकर या मेल करकर स्पष्ट रूप से शोध पत्र के 'मौलिक' होने और इसे अन्यत्र न भेजे जाने का आश्वासन देना होगा। शोध पत्र की सामग्री कहीं से नकल (plagiarism) नहीं होनी चाहिए और इसकी जिम्मेदारी लेखक की स्वयं की होगी।
- 10.जो लेख प्रकाशित किए जाते हैं उनमें त्रुटियां शामिल हैं, या प्रकाशन नैतिकता दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए निर्धारित हैं जैसे एकाधिक सबमिशन, लेखकत्व के नकली दावे, साहित्यिक चोरी, निर्देशिकाओं में लेखों को अनुक्रमित करने की जबरदस्त मांग, डेटा का धोखाधड़ी वाला उपयोग या इसी तरह, उन्हें "वापस लिया जा सकता है" इस स्थिति में पत्रिका बिना किसी रिफंड के वापस करता है
- 11.मूल शोध की रिपोर्ट के लेखकों को किए गए कार्य का सटीक विवरण प्रस्तुत करना चाहिए और साथ ही इसके महत्व की वस्तुनिष्ठ चर्चा भी प्रस्तुत करनी चाहिए। अंतर्निहित डेटा को पेपर में सटीक रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। किसी पेपर में दूसरों को कार्य दोहराने की अनुमति देने के लिए पर्याप्त विवरण और संदर्भ होना चाहिए। कपटपूर्ण या जानबूझकर गलत बयान अनैतिक व्यवहार का गठन करते हैं और अस्वीकार्य हैं। समीक्षा और पेशेवर प्रकाशन लेख भी सटीक और उद्देश्यपूर्ण होने चाहिए।
- 12.लेखकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्होंने पूरी तरह से मौलिक रचनाएँ लिखी हैं, और यदि लेखकों ने दूसरों के काम और/या शब्दों का उपयोग किया है, तो इसे उचित रूप से उद्धृत किया गया है। साहित्यिक चोरी कई रूपों में होती है, जिसमें दूसरे के पेपर को लेखक का अपना पेपर बताना, दूसरे के पेपर के बड़े हिस्से की नकल करना या व्याख्या करना (बिना किसी आरोप के), दूसरों द्वारा किए गए शोध के परिणामों का दावा करना शामिल है। साहित्यिक चोरी अपने सभी रूपों में अनैतिक प्रकाशन व्यवहार है और अस्वीकार्य है।
- 13.साहित्यिक चोरी चाहे जानबूझकर की गई हो या बिना समझे, यह एक गंभीर उल्लंघन है। साहित्यिक चोरी विचारों, पाठ, डेटा और अन्य रचनात्मक कार्यों (जैसे टेबल, आंकड़े, ग्राफ़ आदि) की प्रतिलिपि बनाना और उचित उद्धरण के बिना इसे मूल शोध के रूप में प्रस्तुत करना है। हम साहित्यिक चोरी को ऐसे मामले के रूप में परिभाषित करते हैं जिसमें एक पेपर किसी अन्य कार्य को 10% से अधिक समानता के साथ और बिना उद्धरण के पुन: प्रस्तुत करता है। हम ऐसी अनैतिक प्रथाओं को रोकने के लिए सॉफ़्टवेयर के साथ साहित्यिक चोरी के लिए प्रत्येक प्रस्तुति की जाँच करते हैं।
- 14.यदि स्वीकृति से पहले/बाद में या पेपर के प्रकाशन के बाद साहित्यिक चोरी का सबूत पाया जाता है, तो लेखक को खंडन का मौका दिया जाएगा। यदि तर्क संतोषजनक नहीं पाए जाते हैं, तो पांडुलिपि वापस ले ली जाएगी।
15.जब किसी लेखक को अपने स्वयं के प्रकाशित कार्य में कोई महत्वपूर्ण त्रुटि या अशुद्धि का पता चलता है, तो यह लेखक का दायित्व है कि वह जर्नल संपादक या प्रकाशक को तुरंत सूचित करे और पेपर को वापस लेने या सही करने के लिए संपादक के साथ सहयोग करे। यदि संपादक या प्रकाशक को किसी तीसरे पक्ष से पता चलता है कि प्रकाशित कार्य में कोई महत्वपूर्ण त्रुटि है, तो यह लेखक का दायित्व है कि वह उस पेपर को तुरंत वापस ले या सही करे या मूल पेपर की शुद्धता के बारे में संपादक को सबूत प्रदान करे।।
संपर्क
''SKU शोध संचार''
श्री कृष्णा विश्वविद्यालय (प्रकाशक)
पत्रकारिता विभाग,
ग्राम चौका, सागर रोड, छतरपुर (म.प्र.) 471301
डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह गौतम (संपादक)
ई-मेल - editor@skushodhsanchar.com
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